छन्द परिभाषा एवं भेद

छन्द (Chhand) शब्द ‘छंद्’ धातु में असन् प्रत्यय लगने से बना है। छन्द धातु का अर्थ है- खुश करना (प्रसन्न करना)।

छन्द की प्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। ऋग्वेद में छन्द की उत्पत्ति ईश्वर से बताई गई है। लौकिक संस्कृत के छंदों का जन्मदाता वाल्मीकि को माना जाता है।

आचार्य पिंगल ने ‘छंदसूत्र’ में छन्द का सुसंबद्ध वर्णन किया है, इसे ‘छन्दशास्त्र’ का आदि ग्रंथ माना जाता है। छंदशास्त्र को ‘पिंगलशास्त्र’ भी कहा जाता है।

छन्द की परिभाषा – वर्ण / मात्राओं के नियमित विन्यास से यदि आनंद पैदा होता है, तो उसे छन्द कहते है।

डॉ जगदीश गुप्त के अनुसार – ‘अक्षर’ अक्षरों की संख्या एवं क्रम, मात्रा/गणना तथा यति, गति आदि से संबंधित विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्य रचना छन्द कहलाती है।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार – “छोटी-छोटी सार्थक ध्वनियों के प्रवाहपूर्ण सामंजस्य का नाम छन्द है”

अज्ञेय‘ के अनुसार – “छन्द का अर्थ केवल तुक बंधी हुई समान स्वर मात्रा या वर्ण संख्या नहीं है.. छन्द योजना का नाम है जहां भाषा की गति नियंत्रित है, वहाँ छन्द है।    

छन्द के अंग

छन्द के संघटक अंग आठ है, जो निम्न प्रकार से है।

  1. चरण या पाद – छन्द में प्रायः चार चरण होते है। पहले और तीसरे चरण को विषम चरण तथा दूसरे और चौथे चरण को सम चरण कहते है।
  2. वर्ण – ध्वनि की मूल इकाई को वर्ण कहते है।वर्ण दो प्रकार के होते है।
    1. ह्रस्व वर्ण – अ, इ, उ, ऋ (ह्रस्व वर्ण की एक मात्रा गिनी जाती है)
    1. दीर्घ वर्ण – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ (दीर्घ वर्ण की दो मात्रा गिनी जाती है)
  3. मात्रा – वर्णों के उच्चारण में जो समय लगता है उसे मात्रा कहते है। मात्रा केवल स्वरों की होती है। लघु मात्रा (।) तथा दीर्घ (गुरु) मात्रा (s)
  4. संख्या / क्रम – वर्णों और मात्राओं की गणना को संख्या कहते है तथा लघु-गुरु के स्थान निर्धारण को क्रम कहते है।
  5. गण – तीन वर्णों का एक गण होता है। वर्णिक छन्द में गणों की गणना की जाती है।
    • गणों को संख्या आठ होती है- यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण।
    • इन्हे याद करने की Trick यमता राज भान सलगा    
  6. गति – कविता के पढ़ने के प्रवाह को गति कहते है।
  7. यति – छन्द को पढ़ते समय बीच-बीच में कुछ विराम स्थलों को यति कहते है।
  8. तुक – चरण के अन्त में आने वाले समान वर्णों को तुक कहते है।

छन्द के भेद

छन्द मुख्यतः चार प्रकार के होते है, (1) वर्णिक छन्द, (2) मात्रिक छन्द, (3) मुक्तक छन्द, (4) उभय छन्द। मुक्तक छन्द को छोड़कर शेष- वर्णिक, मात्रिक, उभय छंदों के तीन – तीन उपभेद होते है।

  1. सम छन्द – इसमें चार चरण होते है हर चरण की मात्राएं समान होते है। जैसे- चौपाई, इन्द्रवज्रा आदि।
  2. अर्द्धसम छन्द – इन छंदों में प्रथम और तीसरे तथा दूसरे और चौथे चरणों की मात्राएं या वर्णों में समानता होती है। सम चरण- 2,4 तथा विषम चरण- 1,3)। जैसे – दोहा, सरोठा आदि
  3. विषम छन्द – इसमे चार से अधिक, छः चरण होते है और वे एक समान नहीं होते। किसी भी छें में समान मात्राएं नहीं होती है। जैसे – कुण्डलियाँ, छप्पय आदि

वर्णिक छन्द

वर्ण गणना के आधार पर जिन छंदों की रचना की जाती है उन्हे वर्णिक छन्द कहते है। इन छंदों में वर्णों की गिनती की जाती है। परीक्षाओं की दृष्टि से मुख्य वर्णिक छन्द इस प्रकार है

इन्द्रवज्रा – इसके प्रत्येक चरण में ग्यारह वर्ण होते है तथा प्रत्येक चरण में दो तरण (ss।, ss।), एक जगण (।s।), और अन्त मे दो गुरु वर्ण (ss) होते है।

उदाहरण –

  • होता उन्हे केंवल धर्म प्यारा, सत्कर्म ही जीवन का सहारा
  • जागो उठो भारत देशवासी। आलस्य त्यागो न बनो विलासी। ऊँचे उठो दिव्य कला दिखाओ। संसार में पूज्य पुनः कहलाओं।।

उपेन्द्रवज्रा – इसके भी प्रत्येक चरण में ग्यारह वर्ण होते है, तथा इसमें जगण (।s।), तरण (ss।), जगण (।s।), तथा अन्त में दो गुरु (ss) होते है।

उदाहरण –

  • बिना विचारे जब काम होगा। कभी न अच्छा परिणाम होगा।।
  • मुझे नहीं ज्ञात की मैं कहाँ हूँ, अरे यहाँ हूँ अथवा वहाँ हूँ। विचारता किन्तु यही यहाँ हूँ, नहीं वहाँ तुम मैं जहाँ हूँ।।

मन्दाक्रान्ता – इस छन्द के प्रत्येक चरण में दो तरण, एक मरण, एक भरण, एक नरण, तथा दो गुरु मिलाकर 17 वर्ण होते है। यति 10 एवं 7 वें वर्णों पर होती है।

उदाहरण –

  • तारे डूबे टम टल गया छा गई व्योम लाली। पंछी बोले तमचूर जगे ज्योति फैली दिशा मे।।
  • कोई पत्ता नवल तरु का पीत जो हो रहा हो। तो प्यारे क दृग युगल के सामने ला उसे ही। धीरे-धीरे सम्भल रखना औ उन्हें यों बताना। पीला होना प्रबल दुःख से प्रेषिता सा हमारा।।

वसन्ततिलका – इसका दूसरा नाम सिद्धोंन्नता है, इसके प्रत्येक चरण में चौदह वर्ण होते है। इसका गणनात्मक क्रम इस प्रकार है- तरण, भरण, जगण, जगण तथा अन्त में दो गुरु ।

उदाहरण –

  • कुंजे वही थल वही, जमुना वही है, बेलें वही वन वही, विपती वही है। हैं पुष्प पल्लव वही, व्रज भी वही है, ये किन्तु स्याम बिन हैं न वही-जानते।।
  • भू में रमी शरद की कमनीयता थी। नीला अनंत नभ निर्मल हो गया था।।

मालिनी – इस छन्द में 15 मात्राएं होती है तथा सातवें व आठवें वर्ण के बाद यति होती है। गणों का क्रम – नगण, नगण, भगण, यगण, यगण।

उदाहरण –

  • पल-पल जिसके मैं पंथ को देखती थी। निशिदिन जिसके ही ध्यान में थी बिताती।।

शालनी – इसमें 11 वर्ण होते है। गणों का क्रम- मगण, तगण, तगण, और अन्त में दो गुरु से विन्यस्त छन्द शालिनी होता है।

उदाहरण –

  • कैसी कैसी, ठोकर खा रहे हो, कैसी-कैसी, यातना पा रहे हो।

सवैये – एस छन्द के एक चरण में 22 से लेकर 26 तक वर्ण होते है। इसके कई भेद होते है। जैसे – सुखी सवैये, सुन्दरी सवैये, भुजंग सवैये, मत्तगयंद सवैये आदि।

उदाहरण – यह मत्तगयंद सवैये का उदाहरण है।

  • सीस पगा न झगा तन में, प्रभु जाने को आहि बसै कही ग्राम। धोती फटी सी लटी दुपटी, अरु पाँव उपानह की नहिं सामा।। द्वार खड़ों द्विज दुर्बल एक, रहयो चकिसो बसुधा अभिराम।। पुछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपन नाम सुदामा।।
  • पद कोमल स्यामल गौर कलेवर राजन कोटी मनोज लजाय। कर वान सरासन सीस जटा सर सीरुह लोचन सोन सहाय। जिन देखे रखी सतभायहु तै, तुलसी तिन तो मह फेरि न पाए। यहि मारग आज किसोर वधू, वैसी समेत सुभाई सिधाए।।

शिखरिणी – इस छन्द के प्रत्येक चरण में एक यरण, एक सगण,  एक भरण, एक नरण, एक तरण, एक लघु, तथा एक गुरु मिलाकर 17 वर्ण होते है। छः वर्णों पर यति होती है।

उदाहरण –

  • अनूठी आभा से, सरस सुषमा से सुरस से। बना जो देती थी, वह गुणमयी भू विपिन को।।

मात्रिक छन्द

इसमें मात्राओं की गिनती की जाती है जिन छंदों में वर्णों की समानता पर ध्यान न देकर बल्कि छंदों की मात्राओं की समानता के नियम का पालन किया जाए, उन्हे मात्रिक छंद कहते है। यह छन्द मात्रा की गणना पर आधृत राहत है। मुख्य मात्रिक छंद इस प्रकार है।

चौपाई – यह सम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण तथा प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएं होती है। चरण के अन्त में दो गुरु होते है। पहले चरण की तुक दूसरे चरण से तथा तीसरे चरण की तुक चौथे चरण के अन्त से मिलती है। चरण के अन्त में जगण एवं तगण नहीं होने चाहियें।  

उदाहरण

  • बन्दऊँ गुरु पद पदम परागा, सुरुचि सुवास सरस अनुरागा। अमिय मूरिमय चूरन चारु, समन सकल भवरुज परिवारु।।
  • सुन सिय सत्य असीम हमारी। पूजहिं मन कामना तुम्हारीं।।
  • ऊँ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बेरिहिं मारु बज्र की कीले।।

रोला (काव्यछंद) – यह सम मात्रिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती है तथा 11 और 13 मात्राओं पर यति होती है। प्रत्येक छें के अन्त दो गुरु वर्ण अथवा दो लघु वर्ण होते है। दो-दो चरणों में तुक आवश्यक है।

उदाहरण

  • स्वाति घटा घहराति मुक्ति-पनिप सौं पूरी। कैंधो आवति झुकती सुभ्र आभा रुचि रूरी।।
  • मीन-मकर-जलव्यालनि की चल चिलक सुहाई। सो जनु चपला चमचमति चंचल छवि छाई।।
  • हे दबा यह नियम, सृष्टि में सद्य अटल है। रह सकता है वही, सुरक्षित जिसमें बल है।।

गीतिका – यह सम मात्रिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 26 मात्राएं होती है, 14 और 12 पर यति होती है। चरण के अन्त में लघु-गुरु होना आवश्यक होता है।

उदाहरण

  • वेद-मंत्रों कॉ विवेकी, प्रेम से पढ़ने लगे। वंचकों की छातियों में शुल-से गड़ने लगे।।

हरिगीतिका – यह सम मात्रिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 26 मात्राएं होती है तथा यति 16 और 12 वर्ण पर होती है, तथा अन्त में लघु और गुरु का प्रयोग होता है।

उदाहरण

  • अन्याय सहकर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है। न्यायार्थ अपने बंधु को भी, दंड देन धर्म है।।
  • इहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय शीत हिय हरषित अली। तुलसी भवनिहिं पूजि पुनि मुदित मन मन्दिर चली।।

वीर या आल्हा – इसके प्रत्येक चरण में 31 मात्राएं तथा 16, 15 पर यति होती है। अन्त में गुरु-लघु का होना आवश्यक है।

उदाहरण

  • हिमगिरि के उत्तंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह। एक पुरुष भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय-प्रवाह।।

दोहा – यह अर्द्ध सममात्रिक छन्द है। इसके विषम चरण (प्रथम एवं तृतीय) में 13 मात्राएं तथा सम चरण (द्वितीय एवं चतुर्थ) में 11 मात्राएं होती है, यति चरण के अन्त में होती है। विषम चरणों के अन्त में जगण नहीं होना चाहिए तथा सम चरणों में तुक और अन्त में लघु वर्ण होना चाहिए।

उदाहरण

  • रहिमन चुप ह्रै बैठिये, देखि दिनन को फेर। जब नीके दिन आइ हैं, बनत न लागिहें बेर।।
  • निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति कौ मूल। बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय को शुल।।

सोरठा – यह अर्द्ध सममात्रिक छंद है। यह दोहे का उल्टा यानि विषम चरणों में 11 मात्राएं तथा सम चरणों में 13 मात्राएं होती है। इसमें तुक प्रथम एवं तृतीय चरण में होता है।

उदाहरण

  • बंदौ गुरु पंद कंज, कृपा सिन्धु नर रूप हरि। महा मोह तप पुंज, जासु वचन, रविकर निकर।।

बरवै – यह अर्द्ध सममात्रिक छंद है। जिसके विषम चरणों में 12 और सम चरणों में 7 मात्राएं (कुल 19 मात्राएं) होती है। यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है।

उदाहरण

  • तुलसी राम नाम सम मीत न आन। जो पहुँचाव रामपुर तनु अवसान।।

कुण्डलिया – यह छः चरण वाला विषम मात्रिक सयुक्त छन्द है। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती है। इसमें एक दोहा एक रोला होता है। दोहे के चौथा चरण रोला के प्रथम चरण में दोहराया जाता है तथा दोहे का प्रथम शब्द रोला के अन्त में आता है। इस प्रकार कुण्डलिया का प्रारंभ जिस शब्द से होता है उसी शब्द इसका अन्त होता है।

उदाहरण

  • पहले दो दोहा रहैं, रोला अंतिम चार। रहें जहाँ चौबीस कला, कुण्डलिया का सार। कुण्डलिया का सार, चरण छः जहाँ बिराजे। दोहा अंतिम पाद, सुरोला आदीहि छाजे। पर सबही के अन्त शब्द वह ही दुहराले। दोहे का प्रारंभ, हुआ हो जिससे पहले।
  • साई बैर न कीजिए, गुरु पण्डित कवि यार। बेटा बनिता पौरिया, यज्ञ करावन हार। यज्ञ करावन हार, राजमंत्री जो होई। विप्र पड़ोसी वैद्य आपूनौ, तपै रसोई। कह गिरधिर कवि राय, जुगत सो यह चलिआई। इस तेरह को तरह दिए, बनि आवै साई।।

छप्पय – यह विषम मात्रिक छन्द है। इसमें भी छः चरण होते है। इसमें प्रथम चार चरण रोला के तथा अंतिम दो चरण उल्लाला के होते है।

उदाहरण

  • जहाँ स्वतंत्र विचार न बदले मन में मुख में। जहाँ न बाधक बने, सबल निबलों के सुख में। सब को जहाँ समान निजो त्रति का अवसर हो। शांतिदायिनी निशा हर्ष सूचक वासर हो।।
  • सब भाँति सुशासित हों जहाँ समता के सुखकर नियम। बस उसी स्वशासित देश में, जागे हे जगदीश हम।

मुक्तक छन्द

ये छन्द वर्णों या मात्राओं के प्रतिबंध से मुक्त होते है। आधुनिक कवि इसी का प्रयोग करते है। कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित “जूही की कली” मुक्तक छन्द का एक प्रसिद्ध उदाहरण है

कृपया इन्हे भी देखे। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यंत उपयोगी

chhand in Hindi
chhand in hindi

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