Ras in Hindi रस की परिभाषा, अंग, स्थायी भाव
रसों को काव्य-शास्त्र की आत्मा कहा जाता है। रस सिद्धांत भारतीय काव्य-शास्त्र का प्राचीन और स्थापित सिद्धांत है। सर्वप्रथम भरतमुनी जी ने अपने ग्रंथ ‘नाट्यशास्त्र’ में रस शास्त्र का विवेचन किया। आइए रस तथा उसके अंगों, तत्वों, प्रकारों (Ras in Hindi) का विस्तार से अध्ययन करते है।
रस की परभाषा – किसी काव्य या साहित्य को पढ़ने, देखने या सुनते समय जो आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहते है।
रस के अंग / तत्व / अवयव
रस के मुख्य रूप से चार अंग माने जाते है।
(1) स्थायी भाव – हृदय में सदैव विराजमान रहने वाले भावों को स्थायी भाव कहते है। स्थायी भावों की संख्या नौ है – रति, हास, शोक, भय, उत्साह, विस्मय, जुगुप्सा(घृणा), निर्वेद, क्रोध
रस | स्थायी भाव |
---|---|
श्रंगार रस | रति |
हास्य रस | हास |
करुणा रस | शोक |
वीर रस | उत्साह |
रौद्र रस | क्रोध |
भयानक रस | भय |
वीभत्स रस | घृणा, जुगुप्सा |
अद्भुत रस | विस्मय, आश्चर्य |
शांत रस (बाद में जोड़ा गया) | निर्वेद |
वात्सल्य रस | वात्सल्य रति |
भक्ति रस | ईश्वर विषयक रति |
(2) विभाव – वे भाव जो स्थायी भावों को उत्पन्न या जागृत करते है, उन्हे विभाव कहते है। विभाव दो प्रकार के होते है।
- आलम्बन विभाव -जिन विषयों पे आलंबित होकर बाव उत्पन्न होते है, उन्हे आलम्बन विभाव कहते है। आलम्बन विभाव के भी दो भेद है।
- आश्रय- जिस व्यक्ति के मन में भाव उत्पन्न हो उसे आश्रय कहते है जैसे – नायक / नायिका ।
- विषय – जिस कारण/ प्रति मन में भाव आए उसे विषय कहते है। जैसे – नायिका
- उद्दीपन विभाव – जिस स्थिति या परिस्थिति के कारण मन में भाव आए उसे उद्दीपन विभाव कहते है जैसे – चाँदनी रात को देख्न कर , कोयल के बोलने से, सुनसान जगह के कारण
(3) अनुभाव – आलम्बन की वे चेष्टाएँ/प्रतिक्रियाएं जिनसे ज्ञात होता है की हृदय में कौनसा भाव उत्पन्न हो रहा है उन्हे अनुभाव कहते है। जैसे – गुस्से में मुहँ लाल होना, शर्म से सिर झुकना आदि। अनुभाव के चार प्रकार माने गए है,
- कायिक,
- वाचिक,
- आहार्य
- सात्विक
(NOTE)- सात्विक अनुभाव की संख्या आठ है जो निम्न प्रकार से है –
- स्तम्भ,
- स्वेद,
- रोमांच,
- स्वर-भंग,
- कम्प,
- विवर्णता (रंगहीनता),
- अक्षु,
- प्रलय ( निश्चेष्टा)
(4) संचारी भाव – मन में संचरण करने वाले भाव (आने/जाने वाले) भाव जो स्थायी भावों की पुष्टि करते है। inके द्वारा स्थायी भाव ओर तीव्र हो जाते है इन्हे संचारी भाव कहते है। संचारी भावों को संख्या 33 है। निर्वेद, मद, हर्ष, विषाद, त्रास, लज्जा, ग्लानि, चिंता, शंका, असूया, मोह, गर्व, उत्सुकता, उग्रता, चपलता, दीनता, जड़ता, आवेग, धृति, मति, विबोध, वितर्क, श्रम, आलस्य, निंद्रा, स्वप्न, स्मृति, उन्माद, अवहित्था, अपस्मार, व्याधि, मरण। आचार्य देव कवि ने छल को 34 वाँ संचारी भाव माना है।
रस के प्रकार
आचार्य भरत मुनि जी ने अपने ग्रंथ नाट्यशास्त्र में रसों की संख्या 8 बताई है। आचार्य मम्मट् और पंडित जगन्नाथ ने रसों की संख्या नौ मानी है, सर्वमतानुसार रसों की वर्तमान संख्या 9 है। आचार्य विश्वनाथ ने वात्सल्य को दसवाँ तथा रूप गोस्वामी जी ने मधुर नामक ग्यारवें रस की स्थापना की, जिसे भक्ति रस के नाम से जाना जाता है।
1. शृंगार रस
शृंगार रस का आधार स्त्री-पुरुष कापारस्परिक आकर्षण है, जब अनुभाव, विभाव और स्थायी भाव के सयोग से रति स्थायी भाव उत्पन्न हो जाता है उसे शृंगार रस कहते है।
इसके अवयव निम्न प्रकार है – आश्रय- नायक, आलम्बन- नायिका, उद्दीपन- नायिका की चेष्टा, भाव, मुस्कान, अनुभाव- कटाक्ष, चुम्बन, संचारी भाव- हर्ष, लज्जा, चपलता
उदाहरण – राम को रूप निहारति जानकी कंकन के नग की परिछाई।
इसके दो भेद होते है- संयोग श्रंगार तथा वियोग श्रंगार
(i) संयोग शृंगार
नायक-नायिका के मिलने के प्रसंग में वहाँ संयोग श्रंगार होता है
उदाहरण –
- घिर रहे थे घुँघराले बाल अंश, अवलम्बित मुख के पास, नील घन-शावक से सुकुमार, सुधा भरने को विधु के पास।
- तरनि-तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए। झके कूल सों जल परसन हिट मनहुँ सुहाये।।
- ज्यों-ज्यों लगती है नाव पार, उर में आलोकित शत विचार।।
(ii) वियोग शृंगार
जहाँ वियोग की स्थिति में नायक-नायिका के प्रेम का वर्णन होता है, वहाँ वियोग श्रंगार / विप्रलंभ श्रंगार होता है।
उदाहरण – नेकु कहीं बैननि अनेक कही नेननी सौं। रही सही सोऊ कहि दीनों हिचकिन सौं।।
2. हास्य रस
किसी व्यक्ति के विकृत आकार, वेश-भूषा, वाणी, और चेष्टा से हास्य रस उत्पन्न होता है। इसके अवयव निम्न प्रकार है- स्थायी भाव- हास्य। आलम्बन- दूसरे की विकृति, आकार, वेष-भूषा, वाणी आदि। उद्दीपन- हास्य उत्पन्न करने वाली चेष्टाएँ। अनुभाव- ओंठ, नाक,, मुख का विकसित होना। संचारी- आलस्य, निंद्रा आदि
उदाहरण – आधा पात बबूल का, तामें तनिक पिसान। लाल जी करने लगे, छठे छमास दान।।
3. करुणा रस
किसी प्रिय वस्तु की हानि, प्रिय का चिरवियोग, आदि से जहां शोक की परिपुष्टि होती वहाँ करुणा रस होता है। करुणा रस के अवयव- स्थायीभाव- शोक। आलम्बन- प्रियजन का मृत शरीर, इश्तनाश। संचारी बहव- निर्वेद, ग्लानि, मोह, देनी। अनुभाव- विलाप, शिथिलता, अश्रुपात
उदाहरण – राधौ गीध गोद करि लीन्हों। नयन सरोज सनेह सलिल, सुचि मनहुं अरध जल दीन्हों।।
4. वीर रस
किसी कठिन कार्य या युद्ध के समय हृदय में जो उत्साह का भाव उत्पन्न होता है उसे वीर रस कहा जाता है। वीर रस के अवयव- स्थायीय भाव- उत्साह। आलम्बन- शत्रु। आश्रय- वीर/नायक। उद्दीपन- युद्ध के बाजे। अनिभाव- रोमांच, अंगों का फड़कना
उदाहरण – निसिचर हीं करहूँ महि, भुज उठाइ पन कीन्ह। सकल मुनिन्ह के आश्रमन, जाई जाई सुख दीन्ह।।
5. रौद्र रस
शत्रु अथवा अविनीत व्यक्ति को चेष्टाओं, गुरुजनों की नींद, अपमान आदि से जो क्रोध उत्पन्न होता है, वह विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से परिपुष्ट होकर अस्ववाद्य हो जाता है और रौद्र रस उत्पन्न होता है। इसके अवयव इस प्रकार है- स्थायी भाव- क्रोध। आलम्बन- शत्रु, देशद्रोही, गुरुद्रोही, दुराचारी व्यक्ति। उद्दीपन- कटुवचं, शत्रु द्वारा किए गए अपराध। अनुभाव- नेत्रों का लाल होना, दांत भिचना। संचारी- मोह, जड़ता, गर्व स्मृति
उदाहरण– उस कल मारे क्रोध के, तन काँपने उसका लगा । मानो हवा के जोर से, सोता हुआ सागर जगा ।।
6. भयानक रस
किसी भयपद्र वस्तु, स्थिति या व्यक्ति का ऐसा वर्णन जो हृदय में भय का संचार करें, भयानक रस की व्यंजना करता है। इसके अवयव – स्थायी भाव- भय। आलम्बन- भयानक द्रश्य। उद्दीपन- मूर्छा, कम्प, स्वेद, पलायन। संचार- आवेग, शंका, दैन्य
उदाहरण – एक ओर अजगररहिं लखि एक ओर मृगराय । बिकल बटोही बीच ही परयो मुरछा खाय ।।
7. विभत्व रस –
विभत्व रस का स्थायी भाव घृणा/ जुगुप्सा है। कुछ परिस्थितियों या वस्तुओं के कारण मन में जो धृणा का भाव उत्पन्न होता है वहाँ विभत्व रस उत्पन्न होता है। विभत्व रस के अवयव- स्थायी भाव- जुगुप्सा। आलम्बन- दुर्गंध, माँस, रक्त, शमशान।उद्दीपन- माँस आदि का सड़ना, गिद्धों द्वारा शव को नोचना। अनुभाव- थूकना, नाक-भों सिकोड़ना। संचारी- व्याधि, मोह, जड़ता
उदाहरण – गीध जाँघ को खोदि खोदि कै माँस उपारत। स्वान आंगुरिन काटि काटि कै खात विरादत ।।
8. अद्भुत रस –
किसी असाधारण वस्तु या दृश्य को देखकर मन में ‘विस्मय’ नामक स्थायी भाव उत्पन्न होता है तथा विभावादि से संयुक्त होकर अद्भुत रस में परिवर्तित हो जाता है। इसके अवयव निम्न प्रकार है- स्थायी भाव- विस्मय (आश्चर्य)। आलम्बन- आश्चर्य उत्पन्न करने वाली वस्तु। उद्दीपन- आलम्बन के गुण। अनुभाव- नत्र फैलाना, संभ्रम। संचारी- वितर्क, हर्ष, आवेग
उदाहरण – “ केशव कहि न जाइ का कहिये। देखट तव रचना विचित्र अति समुझि मानहिं मन रहिए।।”
9. शांत रस
अभिनवगुप्त ने शांत रस को सर्वश्रेष्ट माना है। संसार और जीवन की नश्वरता का बोध होने से मन में एक प्रकार का विराग उत्पन्न होता है। निर्वेद नामक स्थायी भाव अनुभाव, संचारी, विभाव से संयुक्त होकर शांत रस में परिणत हो जाता है। इसके अवयव इस प्रकार है। स्थायी भाव- निर्वेद। आलम्बन- ईश्वर चिंतन। आश्रय- ज्ञानी व्यक्ति। उद्दीपन- सत्संग, दार्शनिक ग्रंथों का अध्ययन। संचारी- ग्लानि, दैन्य, जड़ता
उदाहरण – मन रे तन कागद का पुतला। लागै बूँद विनसी जाय छिन में गरब करें क्यों इतना।।
10. वात्सल्य रस
वात्सल्य रस का संबंध छोटे बालक-बालिकाओं के प्रति माता-पिता एवं सगे संबंधियों का प्रेम एवं ममता के भाव से है। तुलसीदास की विभिनं कृतियों के बालक कांड में वात्सल्य रस की सुंदर व्यंजना है। इसके अवयव इस प्रकार है। स्थायी भाव- वात्सल्य। आलम्बन- पुत्र या संतान। आश्रय- माता-पिता। उद्दीपन- संतान के क्रिया कलाप
उदाहरण – जसोदा हरि पालनें झुलावे। हलरावै दुलरावै, मल्हावै जोइ सोई, कुछ गावै।।
11. भक्ति रस
इसका स्थायी भाव ईश्वर विषयक रति है, भक्ति रस के पाँच भेद है- शांत, प्रेम, वत्सल, प्रीति, और मधुर।
उदाहरण – साधु संग बैठी बैठी लोक-लाज खोई। अब तो बात फैल गई जाने सब कोई ।।
Note – वात्सल्य रस की खोज विश्वनाथ ने की, भक्ति रस की खोज रूप गोस्वामी जी ने की, शांत रस के लेखक उद्भट जी थे।
रस से संबंधित प्रश्न उत्तर
प्र.1. भरतमुनि के अनुसार रसो की संख्या हैं-
- आठ
- नौ
- ग्यारह
- दस
उत्तर – आठ
प्र.2. भरत के रस सूत्र में निम्नलिखित में किसकी उल्लेख नहीं हैं।
- स्थायी भाव
- अनुभाव
- व्यभिचार भाव
- शान्त
उत्तर – व्यभिचार भाव
प्र.3. संचारी भावो की कुल संख्या हैं।
- आठ
- नौ
- तैतीस
- छत्तीस
उत्तर – तैतीस
प्र.4. किस रस को रसराज कहा जाता हैं।
- श्रृंगार रस
- वीर रस
- हास्य रस
- भक्ति रस
उत्तर – शृंगार रस
प्र.5. प्रिय पति वह मेरा प्राण प्यारा कहाँ हैं ?
दुःख-जलनिधि-डूबी का सहारा कहाँ हैं ?
इन पक्तियों में कौन-सा स्थायी भाव हैं ?
- विस्मय
- रति
- शौक
- क्रौध
उत्तर – शौक
प्र.6. जहँ-तहँ मज्जा माँस रूचिर लखि परत बगारे ।
जित-जित छिटके हाड़, सेत कहुँ, कहुँ रतनारे।।’’
इस अवतरण में रस है –
- अद्भुत रस
- भयानक रस
- हास्य रस
- वीभत्स रस
उत्तर- वीभत्स रस
प्र.7. शोभित का नवनीत लिए घुटरूनि चलत रेनु तन मण्डित मुख दधि लेप किए।
इन पंक्तियों में कौन-सा रस है ?
- श्रृंगार रस
- हास्य रस
- करूण रस
- वात्सल्य रस
उत्तर – वात्सल्य रस
प्र.8. कवि बिहारी मुख्यतः किस रस के कवि हैं
- करूण
- भक्ति
- श्रृंगार
- वीर
उत्तर- श्रृंगार रस
प्र.9. किलक अरे मैं नेह निहारू।
इन दाँतो पर मोती वारूँ।।
इन पंक्तियों में कौन-सा रस हैं।
- वीर
- शान्त
- वत्सल
- हास्य
उत्तर – वात्सल्य रस
प्र.10. तुमने धनुष तोडा, शशि शेखर का, मेरे नेत्र देखे।
इनकी आग में डूब जाओगे सवंश राघव।।
इन पंक्तियों में कौन सा रस हैं।
- रौद्र
- वीर
- श्रंगार
- वीर
- शान्त
उत्तर- रौद्र रस
प्र11. में सत्य कहता हूँ सखे। सुकुमार मत जानो मुझे।
यमराज से भी युद्ध प्रस्तुत सदा जानो मुझे।।
ळे सारधे। हैं द्रोण क्या ? आवें स्वयं देवेन्द्र भी।
वे भी जीतेंगे समर में आज क्या मुझसे कभी।।
इन पंक्तियों में कौन सा रस हैं।
- वीर
- श्रृंगार
- वत्सल
- रौद्र
उत्तर – वीर रस
प्र12. मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।
इन पंक्तियों में कौन सा रस हैं।
- वीर
- श्रृंगार
- वत्सल
- रौद्र
उत्तर- श्रृंगार
प्र.13. अरे बता दो मुझे कहा हैं, प्रवासी मेरा।
इसी बावले से मिलने डाल रही हूँ मैं फेरा।
इन पंक्तियों में कौन सा रस हैं।
- वीर
- श्रृंगार
- वत्सल
- रौद्र
उत्तर – श्रृंगार
प्र14. वसो मेरे नैनन में नन्द लाल
मोर मुकुट मकराकृत, कुंडल, अरूण तिलक दिए भाल।
इन पंक्तियों में कौन सा रस हैं।
- वीर
- श्रृंगार
- वत्सल
- रौद्र
उत्तर – श्रृंगार
प्र.15. उधर गरजती सिन्धु लहरियाँ, कुटिल काल के जालों सी।
चली आ रही हैं फैन उगलती, फन फैलायें भालो सी।।
इन पंक्तियों में कौन सा रस हैं।
- वीर
- भयानाक
- वत्सल
- रौद्र
उत्तर – भयानक रस
प्र.16. जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै दुरलावै म्ल्हौवे जोई सोई कछु गावै।।
इन पंक्तियों में कौन सा रस हैं।
- वीर
- श्रृंगार
- वत्सल
- रौद्र
उत्तर – वत्सल
प्र.17. सिर पर वैठ्यो काग आँख दोउ खात निकरात।
खींचत जीभहिं स्यार अतिहि आनन्द कर धातर।।
इन पंक्तियों में कौन सा रस हैं।
- वीभत्स
- श्रृंगार
- वत्सल
- रौद्र
उत्तर – वीभत्व
प्र18. एक अचम्भा देखा रे भाई ठाढ़ा सिंह चरावै गाई।
पहले पूत पीछे माई, चेला के गुरू लागे पाई।।
इन पंक्तियों में कौन सा रस हैं।
- वीर
- श्रृंगार
- आश्चर्य
- रौद्र
उत्तर – आश्चर्य
प्र19. माटी कहै कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रौदूंगी तोय।।
इन पंक्तियों में कौन सा रस हैं।
- वीर
- श्रृंगार
- वत्सल
- शान्त
उत्तर – शांत रस
प्र.20. देखि सुदामा की दीन दसा करूणा करिकै करूणानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छूयो नहीं नैनन ही के जल से पग धोये।।
इन पंक्तियों में कौन सा रस हैं।
- वीर
- श्रृंगार
- वत्सल
- करूणा
उत्तर – करुणा
प्र.21. सीरा पर गंगा हसै, भुजानी में भुजंगा हसै,
हास ही को दंगा भयौ, नंगा के विवाह में।।
इन पंक्तियों में कौन सा रस हैं।
- श्रृंगार
- वत्सल
- रौद्र
- हास्य
उत्तर – हास्य रस
Ras in Hindi for Competitive Exams
जिन प्रतियोगी परीक्षाओं में हिन्दी विषय से प्रश्न पूछे जाते है उन परीक्षाओं में रस के दो से तीन प्रश्न अवश्य पूछे जाते है। इसलिए रस हिन्दी विषय (Ras in Hindi) का एक महत्वपूर्ण भाग बन जाता है। रस को समझना आसान है यदि आप सही से इसका अध्ययन करे तो आपको इसके प्रश्नों को निकालने में कोई कठनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा।
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